वेबसाइट बनवाने जा रहे हैं? रखें इन बातों का ख्याल

Ankur Gupta
Ankur Guptahttps://antarjaal.in
पेशे से वेब डेवेलपर, पिछले १० से अधिक वर्षों का वेबसाइटें और वेब एप्लिकेशनों के निर्माण का अनुभव। वर्तमान में ईपेपर सीएमएस क्लाउड (सॉफ्टवेयर एज सर्विस आधारित उत्पाद) का विकास और संचालन कर रहे हैं। कम्प्यूटर और तकनीक के विषय में खास रुचि। लम्बे समय तक ब्लॉगर प्लेटफॉर्म पर लिखते रहे. फिर अपना खुद का पोर्टल आरम्भ किया जो की अन्तर्जाल डॉट इन के रूप में आपके सामने है.

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मैं एक फ्रीलांस वेब डिजाइनर – डेवेलपर हूं और वेबसाइट के निर्माण के सिलसिले मेरा देश विदेश के बहुत से लोगों से  में संपर्क होता रहता है। कई लोग जितना चार्ज करो उससे भी ज्यादा देने को तैयार रहते हैं तो कई भारी मोलभाव भी करते हैं। कई लोग पहली बार वेबसाइट बनवा रहे होते हैं तो कई अपनी पिछली वेबसाइट का पुन:निर्माण करवाने के लिए संपर्क करते हैं। इससे जो मुझे अनुभव हुआ है मैं समझता हूं कि उसे आप सभी से साझा करना चाहिए ताकि आप जब किसी से साइट बनवाने जाएं तो आप बेहतर निर्णय ले सकें।

डोमेन, होस्टिंग और डिजाइनर/डेवेलपर को समझें

डोमेन नेम आपकी साइट का नाम होता है जैसे www.yahoo.com यह डोमेन नेम है। इंटरनेट चौबीसों घंटे- तीन सौ पैंसठ दिन लगातार चलने वाले सर्वरों की बदौलत चलता है। इन्ही सर्वरों में वेबसाइटें रखी जाती हैं। इसके लिए हमें कुछ शुल्क देकर जगह किराए से लेनी होती है। इसे होस्टिंग कहा जाता है। फिर वेबसाइट के जो पेज होते हैं, सामग्री होती है उसे तैयार करने का काम डिजाइनर एवं डेवेलपर करते हैं। जब आप अपनी वेबसाइट बनवाते हैं तो आपको इन तीनों का अलग अलग भुगतान करना होता है। सामान्यत: डोमेन और वेबहोस्टिंग का होस्टिंग सेवाप्रदाता कंपनी को और वेबसाइट निर्माण का भुगतान डिजानर एवं डेवेलपर को करना होता है। कभी कभी वेबडिजाइनर लोग ही डोमेन और होस्टिंग भी साथ ही उपलब्ध करवा देते हैं और उसका शुल्क अपनी फीस में जोड़ लेते हैं।

डिजाइनर अथवा कंपनी के पिछले काम को देखें

यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। हर कंपनी/डिजाइनर के पास हुनर और विशेषज्ञता का अलग अलग स्तर होता है। कई ऐसे मिलेंगे जो आपको एकदम “सरकारी” टाइप साइट बनाकर भी दे सकते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि आप उसका पिछला काम देखें। यदि वह आपको अच्छा लगे तो विचार करें।

सारी शर्तें और आगे की सेवाओं को जान लें

हर कंपनी/डिजाइनर अलग अलग शर्ते रखते हैं। मसलन मुफ्त मदद (फ्री सपोर्ट की अवधि),  वार्षिक नवीनीकरण, होस्टिंग संबंधी शर्तें आदि। अत: इन सभी के संबंध में अच्छी तरह से जानकारी ले लें। मेंटिनेंस और बग फिक्स के शुल्क आदि के संबंध में भी पूछ लें। भविष्य में आपको क्या मुफ्त में मिलेगा और किसका किसका और कितना पैसा लगेगा, यह बात एकदम स्पष्ट कर लें।

स्टैटिक बनाम डायनेमिक साइटों में अंतर समझें

मैं यहां आपको एकदम गैर तकनीकी – सरल भाषा में समझाता हूं।

स्टैटिक वेबसाइटों में एक बार सामग्री डल जाने के बाद उसमें कोई भी परिवर्तन करना डिजाइनर के हाथ में होता है। यानि कि यदि आप कोई एक पेज जोड़ना चाहें या फोटो बदलना चाहें तो आपको डिजाइनर से संपर्क करना पड़ेगा। स्टैटिक वेबसाइटों के प्लान अक्सर इस प्रकार बताए जाते हैं: १० पेज, एक कान्टैक्ट अस फार्म, एक फ्लैश इमेज शुल्क ८०००रुपए आदि। या होमपेज का शुल्क ४००० रुपए और फिर ५०० रुपए प्रति पेज। यदि प्लान इस किस्म का है तो समझ जाइए कि यह स्टैटिक वेबसाइट का प्लान है।

वहीं डायनेमिक साइटों के पीछे कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम लगाया जाता है। इसमें आप खुद से पेज जोड़ पाते हैं। फोटो जोड़ पाते हैं। सामग्री में परिवर्तन की कुंजी आपके हाथ में होती है। सामान्यत: ऐसी वेबसाइटें स्टैटिक वेबसाइटों की तुलना में कुछ अधिक महंगी पड़ती हैं। डायनेमिक वेबसाइट आपके एक सामान्य से ब्लाग से लेकर एक फ्री क्लासिफाइड साइट से लेकर एक सर्च इंजन तक कुछ भी हो सकती है। उदाहरण के लिए आप अभी इसे अंतर्जाल डॉट इन पर पढ़ रहे हैं जो कि एक डायनेमिक साइट है। इसके पीछे एक सीएमएस लगा हुआ है जहां से इस लेख को प्रकाशित किया जा रहा है। इसी प्रकार अन्य समाचार पोर्टल जैसे भास्कर डॉट कॉम, टाइम्स ऑफ इंडिया आदि भी डायनेमिक साइटों के उदाहरण हैं। ऐसी साइट के निर्माण के लिए आपको डेवेलपर से मिलकर बात करनी होगी।

इस क्षेत्र में एमआरपी नही होती

हो सकता है कि आप तीन कंपनियों से मिलकर आएं और तीनों को अपनी जरूरत बताएं और तीनों आपको अलग अलग कीमत बता दें वो भी भारी अंतर के साथ जैसे कोई आपको कहे कि आपकी साइट ५००० रुपए में बना देगा तो कोई ७०००  में तो कोई १५००० में। ऐसे में असमंजस होना स्वाभाविक है। या आप सबसे सस्ते की ओर चल सकते हैं। लेकिन ठहरिए! सस्ती चीज के अच्छे होने की संभावना कम ही है।

मेरे साथ एक बार ऐसा हुआ कि एक वेबसाइट का शुल्क मैंने १२००० रुपए बताया था, किन्तु उस व्यक्ति नें किसी और से मात्र ३००० रुपए में साइट बनवा ली। जब मुझे पता चला तो मैंने उसकी साइट देखी तो दंग रह गया। साइट एकदम “सरकारी” साइटों की तरह दिख रही थी और तो और एक भी फाइल अपलोड करने भर को कह देने पर उनका डिजाइनर चिड़चिड़ा जाता था। सीधी सी बात है मात्र तीन हजार रुपए में वो ज्यादा कुछ नही दे सकता। इसलिए मेरी सलाह होगी कि पैसे के साथ साथ ऊपर बताए गए सभी बिंदु यानि कि डिजाइनर के पिछले काम और आगे की सारी सेवाओं की जानकारी ले लें। फिर निर्णय करें।

कई बार इस क्षेत्र में नए नए आए हुए डिजाइनर भी अपना शुल्क काफी कम रखते हैं क्योंकि वो चाहते हैं कि उनको अधिक से अधिक काम मिले। ऐसे में न तो उनको औरों से कम आंकें और ना ही अधिक आंके। क्योंकि हो सकता है कि वो शायद आपका काम काम किसी कंपनी की तुलना में अच्छे से कर दें या फिर उन्हे अच्छा काम ही न आता हो और आपके पैसे बर्बाद हो जाएं। इसलिए उनका हाल का काम देखें। यदि वह आपको जंचे तो उन्हे काम दिया जा सकता है। यदि आपका काम जटिल और जोखिम भरा नही है और आपकी अधिक खर्च वहन नही कर सकते तो “फ्रेशर” को मौका देने में हर्ज नही।

किन्तु यदि आप सब कुछ अच्छी गुणवत्ता का चाहते हैं तो फिर अनुभवी और विश्वसनीय डिजाइनर/कंपनी से सेवाएं लें। जरूरत से ज्यादा मोलभाव करने वालों को मेरी सलाह है कि “महंगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार बार”। (मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि ऐसे लोगों से भी मेरा पाला पड़ चुका है)

वेबसाइटों के निर्माण का काम कई लोग अपने घर से ही अकेले या दो चार दोस्त मिलकर करते हैं। तो हो सकता है कि आपको वहां कोई चमचमाता ऑफिस ना दिखे। अक्सर हम चमक दमक से आकर्षित हो जाते हैं। ऐसे में उन्हे कम न आंके क्योंकि जो चमचमाता हुआ ऑफिस रखेगा वो आपसे उसके पैसे भी वसूल करेगा। और काम की गुणवत्ता ऑफिस के रंग रूप से तय नही होती।

और अंत में एक बात और

मुझे कुछ लोग ऐसे मिले जिन्होने पहले किसी से साइट बनवा रखी थी फिर किसी कारणवश नव निर्माण हेतु उन्होने मुझसे संपर्क किया। मैंने कहा कि साइट बन जाएगी। आपके पास डोमेन नेम के कंट्रोल पैनल का आईडी पासवर्ड है ना? उन्हे डोमेन नेम ही नही मालूम था। कुछ कंपनियां जब आपको वेबसाइट बनाकर देती हैं तो साथ में वेब होस्टिंग और डोमेन नेम भी देती हैं। किन्तु उसका आईडी पासवर्ड अपने पास रखती हैं। ताकि ग्राहक बंधा रहे। तो मेरी सलाह होगी कि आप कम से कम डोमेन नेम का आईडी पासवर्ड अवश्य अपने पास रखें। ताकि यदि वेब-डिजाइनर बदलना भी पड़े तो आपकी वेबसाइट का “नाम” आपके साथ ही रहे। बेहतर होगा कि होस्टिंग और डोमेन नेम अलग से खुद ही खरीद लें या फिर यदि वेब डिजाइनर ही आपको वो दे रहा हो तो उससे उसका आईडी पासवर्ड अवश्य मांग लें।

मैंने अपने अनुभवों के आधार पर यह लेख लिखा है। आशा है कि यह लेख आप सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। और आप अपनी वेबसाइट हेतु अच्छा चुनाव कर पाएंगे।

लेखक स्वतंत्र वेब डिजाइनर एवं डेवेलपर हैं।
पीएचपी-माईएसक्यूएल, Yii-Framework, वर्डप्रेस एवं जेक्वेरी पर काम करते हैं।
वेबसाइट: www.abhinavsoftware.com

 

13 टिप्पणी

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

  2. बहुत बढीया जानकारी, कई कंपनीया डामेन नाम भी अपने नाम से रजीस्टर कर लेते हैं और बाद मे कोई प्राबलम आता है तो डामेन डिसेबल कर देते हैं और फिर आप अपना डामेन किसी तरह से वापस भी नही ले सकते हैं|

  3. बहुत बढीया जानकारी, कई कंपनीया डामेन नाम भी अपने नाम से रजीस्टर कर लेते हैं और बाद मे कोई प्राबलम आता है तो डामेन डिसेबल कर देते हैं और फिर आप अपना डामेन किसी तरह से वापस भी नही ले सकते हैं|

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