ड्युल बूट करें या वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण)

Ankur Gupta
Ankur Guptahttps://antarjaal.in
पेशे से वेब डेवेलपर, पिछले १० से अधिक वर्षों का वेबसाइटें और वेब एप्लिकेशनों के निर्माण का अनुभव। वर्तमान में ईपेपर सीएमएस क्लाउड (सॉफ्टवेयर एज सर्विस आधारित उत्पाद) का विकास और संचालन कर रहे हैं। कम्प्यूटर और तकनीक के विषय में खास रुचि। लम्बे समय तक ब्लॉगर प्लेटफॉर्म पर लिखते रहे. फिर अपना खुद का पोर्टल आरम्भ किया जो की अन्तर्जाल डॉट इन के रूप में आपके सामने है.

ड्युल बूट करें या वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण) का इस्तेमाल करें?

किसी भी कम्प्यूटर में एक साथ एक से अधिक ऑपरेटिंग सिस्टम यानि कि प्रचालन तंत्र स्थापित किए जा सकते हैं। यानि कि आप विंडोज़ के साथ साथ लिनक्स स्थापित करके दोनों का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन एक से अधिक ऑपरेटिंग सिस्टम (प्रचालन तंत्र) एक ही कम्प्यूटर में स्थापित करने के दो तरीके हैं:

  • ड्यूल बूट
  • वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण)

१. ड्यूल बूट:

ड्युल बूट करें या वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण) 1

हम कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क के कई हिस्से बनाकर यानि कि पार्टीशन करके प्रत्येक में अलग अलग प्रचालन तंत्र स्थापित करने को ड्यूल बूट कहा जाता है। यानि कि आप सी ड्राइव में विंडोज़ और डी ड्राइव में लिनक्स स्थापित कर सकते हैं। फिर जब कम्प्यूटर को चालू किया जाएगा तब कम्प्यूटर आपसे पूछेगा कि आप कौन सा ऑपरेटिंग सिस्टम चालू करना चाहेंगे। आप जिसे भी चुनेंगे वह चालू हो जाएगा।

ड्यूल बूट में होता यह है कि जो भी प्रचालन तंत्र चालू होता है वह कम्प्यूटर के पूरे हार्डवेयर का इस्तेमाल कर पाता है। इसलिए यह कम्प्यूटरी खेल अथवा भारी भरकम प्रोग्रामों को चलाने के लिए उपयुक्त है।

२. वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण):

ड्युल बूट करें या वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण) 2

जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि इसमें असली का कुछ नही होता है। सब कुछ आभासी होता है। कुछ सॉफ्टवेयर हैं जैसे कि वीएमवेयर, वर्चुअल बॉक्स आदि जिनकी मदद से हम अपने कम्प्यूटर के अंदर अलग अलग आभासी कम्प्यूटरों का निर्माण कर सकते हैं। मसलन यदि हमारे कम्प्यूटर में 4गीगा बाइट की रैम लगी हुई है तो 512MB या 1GB या 2GB इत्यादि की रैम एक वर्चुअल मशीन (आभासी कम्प्यूटर) को दी जा सकती है। एक बड़ी फाइल के रूप में वर्चुअल हार्ड ड्राइव बन जाएगी। फिर इस मशीन को वर्चुअलाइजेशन के सॉफ्टवेयर जैसे वीएमवेयर अथवा वर्चुअल बॉक्स के जरिए चलाया जा सकता है। और उसमें कोई भी ऑपरेटिंग सिस्टम ठीक वैसे ही स्थापित किया जा सकता है जैसे कि किसी असली कम्प्यूटर में किया जाता है।

वर्चुअलाइजेशन में मुख्य कम्प्यूटर के पूरे हार्डवेयर की ताकत वर्चुअल मशीन को नही मिलती है, अत: यह भारी भरकम कामों के लिए ठीक नही है। लेकिन यदि आप किसी नए ऑपरेटिंग सिस्टम को आजमाना चाहते हैं या किसी सॉफ्टवेयर की जांच करना चाहते हैं तो आभासी मशीनों में करने से आपके मुख्य ऑपरेटिंग सिस्टम खतरे से बाहर रहता है।

मैं आभासीकरण का कैसे इस्तेमाल करता हूं?

चूंकि मैं वेब डिजाइनर एवं डेवेलपर हूं तो मुझे लिनक्स सर्वर की आवश्यता थी। आप कहेंगे कि वैम्प वगैरह भी इस्तेमाल कर सकता था। किन्तु विंडोज़ का माहौल लिनक्स की तुलना में एकदम अलग होता है। मसलन विंडोज़ में फाइलों का नाम केस सेंसिटिव नही होता है किन्तु लिनक्स में होता है। और जब विकसित किए जाने वाले सॉफ्टवेयर एवं वेबसाइटें जब लिनक्स सर्वर पर ही स्थापित किए जाने हैं तो उनका निर्माण यदि लिनक्स में ही होगा तो अच्छा रहेगा। वहीं दूसरी ओर मुझे फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयरों की भी आवश्यकता थी जिनपर मैं वेबसाइटों के डिजाइन बनाता हूं। लेकिन ये केवल विंडोज़ पर चलते हैं। अब या तो मैं एक अन्य कम्प्यूटर को स्थाई तौर पर सर्वर बना देता या फिर एक आभासी मशीन पर लिनक्स सर्वर स्थापित कर देता।

मैंने वर्चुअल बॉक्स में एक वर्चुअल मशीन बनाई और उसमें उबुन्टू का सर्वर संस्करण स्थापित कर दिया। सालों से उसी पर काम कर रहा हूं। सारा काम अच्छे से हो जाता है। सर्वर को नियंत्रित करने के लिए वेबमिन स्थापित कर रखा है।

विंडोज मेंरा होस्ट ऑपरेटिंग सिस्टम है और उबुन्टू सर्वर गेस्ट ऑपरेटिंग सिस्टम।

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